College Prospectus

प्रशस्तं
श्री व्यास संस्कृत महाविद्यालय , रघुनाथपुर कुल्लू गत २७ वर्षों से संस्कृत विद्या की सेवा में समर्पित है । भारतीय मेधा के संरक्षण , संवर्द्धन , पोषण के संकल्प को प्रशस्त करते हुए इसकी यह यात्रा अपने लक्ष्य के प्रति सर्वदा उन्मुखी बनी रहे , यही ईश्वर से कामना करता हूँ ।
डॉ. ओम कुमार शर्मा
संस्थापक आचार्य
श्रीस्वामिमाधवानन्दसरस्वती
वेदविद्याशोधसंस्थानम् ( पंजी० )
हृन्निवेदनं
संस्कृतं देवभाषा वर्तते । अनयैव ब्रह्माण्डस्य ज्ञानं जायते , ब्रह्माण्डनिर्मातुः परिचयः साक्षात्कारश्चानयैव क्रियते ।
एतस्याः संरक्षणं संस्थाभिः विधीयते । एतद्कार्यं महनीयं साकञ्च भारतस्यादर्शरक्षणार्थं प्रशंसार्हं दरीदृश्यते । एतस्मात्कारणात् श्रीव्याससंस्कृतमहाविद्यालयः इति नामिका संस्था गौरवाधायिका वर्तते । शुभकामनापन्ना संस्था भवेत् इति
कामययीशतः ।
डॉ० सीतारामठाकुरः ( पूर्वभाषाधिकारी )
संरक्षकः
श्रीस्वामिमाधवानन्दसरस्वती
वेदविद्याशोधसंस्थानम् ( पंजी . )


It gives me immense pleasure to know that Sri Vyas Sanskrit college Raghunathpur ,kullu is going to publish prospectus for the academic session 2023 – 24 . This institution is one of the leading Sanskrit college not only in Kullu , but also in entire Himachal Pradesh . The information provided in the brochure shall be immensely beneficial to the students . I wish the administration , teachers , guardians and the students good luck in this endeavour .
Mr.MotiLal Sharma
Chair Person
Sri Swami MadhawanandSaraswati
VedVidyaShodhSansthan( Regd. )
ब्रह्मलीन सन्त तपस्वी श्री स्वामी माधवानन्द सरस्वती जी की नेक
इच्छा को उनके एक शिष्य ओम कुमार ( वर्तमान में डॉ० ओम कुमारजी ) ने अपने दृढ़ संकल्प और अथक प्रयासों से श्री व्यास संस्कृत महाविद्यालय , रघुनाथपुर , कुल्लू के रूप में स्थापित संचालित और व्यवस्थित करके न केवल पूर्ण किया , अपितु कुल्लू जनपद को और उनकी आने वाली पीढ़ियों को यह सुविधा प्रदान करके एक उत्तम भेंट अर्पित की है , जिसके लिए हम आपके सदैव ॠणी और आभारी रहेंगे ।
श्री व्यास संस्कृत महाविद्यालय अपने नामानुसार संस्कृत
के पण्डितों की खान है जो विद्यार्थियों को प्रकाण्ड विद्वान् बनने का सुअवसर प्रदान करता है तथा सनातनियों की इच्छापूर्ति का स्थान है। श्री स्वामी माधवानन्द सरस्वती वेद विद्या शोध संस्थान द्वारा वैदिकविद्या ग्रहण करने व जनकल्याणार्थ श्री व्यास संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना एक श्रेष्ठ कार्य है , जो वास्तव में श्लाघनीय है ।
ओ३म् शिव ओ३म् ।।
श्री गोपाल कृष्ण शर्मा
उपाध्यक्ष
श्रीस्वामिमाधवासरस्वती
वेदविद्याशोधसंस्थानम् ( पंजी ० )


श्रीरघुनाथचरणाश्रितः संस्कारसंस्कृतिसंस्कृतार्थसमर्पितः कुल्लूनगरे भूषणभूतः प्रतिवर्षलब्धनवीनकीर्तिमानो श्रीव्याससंस्कृतमहाविद्यालयोऽस्ति । भविष्यार्थमपि मया सन्मङ्गलकामना प्रदीयते , यतो गतवर्षवत् हिमाचलप्रदेशे लब्धकीर्त्यनुकूलोऽसौ भवेत् । सर्वं शुभं भूयात् ।
श्रीमती प्रेमला ठाकुर
सचिव
श्रीस्वामिमाधवानन्दसरस्वती
वेदविद्याशोधसंस्थानम् ( पंजी ० )
श्री व्यास संस्कृत महाविद्यालय , रघनाथपुर , कुल्लू अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए गत 22 वर्षों से संस्कृत की सेवा में संलग्न है । इस वर्ष महाविद्यालय ने ‘ रजत जयन्ती समारोह ’ आयोजित करके अपने लक्ष्य की ओर चलने की प्रेरणा का प्रमाण समाज को दिया है ।
संस्थापक सदस्य होने से मुझे इस उपलब्धि पर गर्व है संस्कृत
व भारतीय संस्कृति की सेवा को लक्ष्य मान कर यह महाविद्यालय इसी प्रकार उन्नति पथ पर अग्रसर रहे , ऐसी हार्दिक कामना करता हूँ । मेरी सभी प्रबन्ध समिति के पदाधिकारियों , सदस्यों , प्राध्यापकों , अभिभावकों तथा विद्यार्थियों को हार्दिक शुभकामनाएँ।
श्री चमन लाल शर्मा
संस्थापक सदस्य
श्रीस्वामिमाधवानन्दसरस्वती
वेदविद्याशोधसंस्थानम् ( पंजी० )


It is the matter of hardwork and consistent delight efforts of the college Staff and particularly the College Managementcommittee , the institution flourished Sri Vyas Sanskrit college , Raghunathpur , kullu , since it came into being . As any great work or institution a dedicated individual or personality is required . For great work is never ever without great effort . We were fortunate encourage to have such personality in the name of Dr. Om kumar Sharma , who has wholly devoted his whole life to the Cause of Sanskrit , imparting the knowledge of our scriptures through teaching and seminars . The institution is flourishing day by day in his supervision in DevBhumi ,Kullu .
So , when the institution is now publishing its own Prospectus today and it is the matter of great delight for me .On this auspicious occasion I want to convey the heart – felt delight to all my colleagues , parents , students too .
Mr. Neerat Singh Thakur
Founder member
Sri Swami MadhawanandSaraswati
VedVidyaShodhSansthan( Regd. )
स्वामी जी का लघु परिचय
इदं परमर्षिभ्यः पथिकृद्भ्यः नमः
भारतवर्ष अनादिकाल से ही देवों , ॠषियों , आचार्यों व विचारकों का देश रहा है । इसी अनादि परम्परा में तथा उसके प्रतिनिधिस्वरूप अनन्तविभूषित श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ ब्रह्मलीन परमहंस स्वामी माधवानन्द सरस्वती जी महाराज भी थे । वे प्राचीन भारतीय सनातनवैदिक ज्ञान व परम्परा के संरक्षक , प्रतीक , पोषक व प्रेरक थे । उनके सङ्कल्प का साकार रूप ही वर्तमान में “ श्री व्यास संस्कृत महाविद्यालय , रघुनाथपुर , कुल्लू ” है , जो अपने लक्ष्य के प्रति तीव्रता से अग्रसर हो रहा है ।
प्रातः स्मरणीय ब्रह्मलीन परमहंस स्वामी माधवानन्द सरस्वती जी महाराज का जन्म केरल प्रदेश के नम्बूदरीपाद वैदिक ब्राह्मण के संस्कारवान् परिवार में हुआ था । बाल्यकाल में ही सनातन वैदिक शिक्षा के वातावरण व संस्कारों में पलकर स्वामी जी वेद – वेदान्त , संस्कृत , कर्मकाण्ड , ज्योतिष व आङ्गलभाषा आदि सभी शास्त्रीय व व्यावहारिक विषयों के निष्णात आचार्य के रूप में ही परिणत हो गये थे ।
स्वामी जी का प्रारम्भिक जीवन ( जैसा कि अमर सिंह राणा जी , सेवानिवृत बी॰ डी॰ ओ॰ , गौशाल , लाहुल एवं स्पीति , हिमाचल प्रदेश के द्वारा ज्ञात हुआ है ) एक शिक्षक के रूप में आरम्भ हुआ था । कालान्तर में भगवान् श्रीमच्छङ्कराचार्य जी के अद्वैत मत सेप्रभावित होकर परम वैराग्यसम्पन्न बनकर ॠषिकेश के कैलाश आश्रम से संन्यास की शिक्षा लेकर एक परिव्राजक संन्यासी के रूप में भारतभ्रमण करते हुए अपनी साधना करते रहे ।
सम्पूर्ण भारतवर्ष में ही प्रायः पैदल भ्रमण करते हुए लगभग सन् १९६0 ई॰ के दशक में पठानकोट के मार्ग से कुल्लू जनपद में पहुँचे । तत्कालीन कुल्लू व हिमाचल प्रदेश के अनेक गण्यमान्य व्यक्तियों के द्वारा पूजित होकर कुल्लू जनपद के अनेक स्थानों पर कुछ – कुछ समय तक रहते हुए अन्ततोगत्वा वर्तमान व्यासाश्रम भेखली मोड़ , छिम्बा बावडी , रामशिला , कुल्लू की व्यासगुहा , जोकि एक परम्परागत सिद्धगुहा है , में ब्रह्मनिष्ठ होकर साधना करते रहे , तथा २३ अप्रैल सन् १९९५ ई॰ को ब्रह्मलीन हो गए ।
स्वामी जी लगभग बीस वर्ष तक व्यासाश्रम की व्यासगुहा में परमहंस दशा में रहे । इन वर्षों की अन्तिम सात वर्षों की जीवन अवधि में तत्कालीन ब्रह्मचारी ओमकुमार शर्मा ( वर्तमान में ब्रह्मलीन स्वामी माधवानन्द सरस्वती वेद – विद्या शोध संस्थान ( पंजी॰ ) के संस्थापक एवं श्री व्यास संस्कृत महाविद्यालय , रघुनाथपुर , कुल्लू के प्राचार्य डॉ॰ ओमकुमार शर्मा ) उनके अन्तरङ्ग दीक्षित शिष्य व लघु सेवक बनकर रहे ।
उन्हें ( ब्रह्मचारी ओमकुमार शर्मा को ) ही स्वामी जी ने सनातन वैदिक परम्परा में चलने के लिए प्रेरित किया तथा भारत के उस सनातन वैदिक ज्ञान की रक्षा का उपदेश भी दिया ।
सङ्कल्प :-
स्वामी जी का सङ्कल्प था कि कुल्लू जनपद में भी एक सर्वाङ्गपूर्ण वेदविद्या के केन्द्र की स्थापना होनी चाहिए , जिससे समाज में सनातन भारतीय ज्ञान का सन्देश निरन्तर ही भगवती गङ्गा की तरह ज्ञानगङ्गा बनकर प्रवाहित होता रहे ।
स्वामी जी का यह दृढ़ व निश्चित मत था कि भारत व विश्व की उन्नति के लिए वैदिक ज्ञान का प्रचार – प्रसार व संरक्षण अवश्य ही करना पड़ेगा । अन्यथा भारत ही नहीं , अपितु विश्व मानवता का भी अवश्यमेव विनाश हो जाएगा । कृण्वन्तु विश्वमार्यम् के आदर्श पर ही भारतीय जीवन पद्धति को स्थापित करना होगा तथा वेदान्त के अमृत का पान विश्व मानवता को कराना होगा , तभी एक वास्तविक भारतीय होने का कर्तव्य पूर्ण किया जा सकता है ।
भारत की आत्मा संस्कृत के उत्थान व सतत प्रसार के लिए स्वामी जी के अत्यन्त प्रखर व उत्तेजित ज्वलन्त विचार ही नहीं थे , अपितु उनका जीवन भी प्राचीन भारतीय सनातन वैदिक ज्ञान के आदर्शों का मूर्तिमान् स्वरूप था । यही आदर्श परम्परा श्री व्यास संस्कृत महाविद्यालय , रघुनाथपुर , कुल्लू के रूप में वे भावी पीढ़ी के लिए प्रदान कर गए हैं । उसी आदर्श मार्ग पर ही श्री व्यास संस्कृत महाविद्यालय नितदिन अग्रसर हो रहा है ।
महाविद्यालय – इतिहास व परिचय
श्री व्यास संस्कृत महाविद्यालय , रघुनाथपुर , कुल्लू सनातन भारतीय वैदिक ज्ञान के संरक्षण , संवर्द्धन व प्रसार के लिए गत २७ वर्षों से सतत कटिबद्ध है ।
महाविद्यालय के संचालन के लिए जिन स्वयंसेवी संस्कृत पण्डितों व संस्कृत संरक्षक प्रेमी जनों ने जो अप्रतिम ज्ञानसेवा का आदर्श आज के इस भौतिकवादी पतित युग में प्रस्तुत किया है , उसका सङ्केत करना भी यहाँ प्रासङ्गिक होगा । इन्हीं स्वयंसेवी पण्डितों ने तन – मन – धन से सर्वप्रथम आहुति इस महान् ज्ञानयज्ञ में डाली थी । अतः ॠषि ॠण की दृष्टि से उनका यहाँ स्मरण करना अत्यावश्यक ही नहीं , अपरिहार्य भी है ।
१. स्व०प्रो० डॉ० गङ्गादत्त शास्त्री ‘ विनोद ’ जी(राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त )
श्री व्यास संस्कृत महाविद्यालय , रघुनाथपुर , कुल्लू , के सर्वप्रथम स्वामी जी के स्वप्न को साकार रूप देने वाले प्रो० गङ्गादत्त शास्त्री जी हैं ।
ये महाविद्यालय के सक्रिय प्रेरणास्रोत व मूलस्तम्भ के रूप में रहे हैं । प्रख्यात वेदाचार्य , हिन्दी – संस्कृत व आङ्ग्ल भाषा के यशस्वी लेखक , उद्भट पण्डित , आशु कवि , अनेक साहित्यिक सम्मानों से विभूषित , शताब्दीरत्न , भारतगौरव व राष्ट्रपति पुरस्कार से अलङ्कृत अनेक यशस्वी पुस्तकों के लेखक , भारतीय संस्कृति के मर्मस्पर्शी पण्डित , आदर्श व प्रतिनिधि , त्याग , तपस्या , निःस्वार्थ समाज सेवा , शास्त्रसेवा के ज्वलन्त उदाहरण , भारतीय सनातन वैदिक आर्य परम्परा के वाहक प्रो० गङ्गादत्त ‘ विनोद ’ जी के दिशा – निर्देशन में ही महाविद्यालय सतत अग्रसर बनते हुए वर्तमान उन्नतदशा में पहुँच पाया है ।
२. स्व०श्री लक्ष्मणराम शर्मा जी
महाविद्यालय के द्वितीय प्रशस्त स्तम्भ , भारतीय संस्कृति के मुखर प्रवक्ता व उद्भट पण्डित , ज्योतिषाचार्य ( गणित ) ,तन्त्राचार्य , महान् शिक्षाविद् व सनातन वैदिक पद्धति के पोषक श्री लक्ष्मणराम शर्मा जी , यद्यपि वर्तमान में भौतिकरूप से हमारे मध्य नहीं हैं , तदपि आशीषों के रूप में उनकी कृपा महाविद्यालय पर सदैव ही बरस रही है । उनके द्वारा निर्दिष्ट पथ व आदर्शों पर ही चलकर महाविद्यालय उन्नति की ओर अग्रसर बना हुआ है ।
३. श्री चमनलाल शास्त्री जी
महाविद्यालय के तृतीय स्तम्भ स्व० श्री लक्ष्मणराम शर्मा जी के प्रमुख शिष्य , त्याग व तपस्या के प्रतीक श्री चमनलाल शास्त्री जी हैं । इन्होंने महाविद्यालय के प्रारम्भिक पाँच वर्षों में अपना सर्वस्व बलिदान करते हुए तन – मन – धन से महाविद्यालय की नींव को अपनी अप्रतिम व आदर्श स्वयंसेवा से सींचा है ।
४. श्री नीरत सिंह ठाकुर जी
महाविद्यालय के चतुर्थ स्तम्भ आङ्ग्लभाषा के प्रकाण्ड पण्डित , लेखक , वक्ता , चिन्तक व भारतीय संस्कृति के सर्वथा समर्पित उपासक श्री नीरत सिंह ठाकुर हैं । इन्होंने भी महाविद्यालय की प्रारम्भिक पाँच वर्षों में अतुलनीय सेवा की है । तथा तन – मन – धन न्यौछावर किया है ।
५. डॉ० ओमकुमार शर्मा
महाविद्यालय के पार्श्वस्तम्भ के रूप में अन्य स्वयंसेवक डॉ० ओमकुमार शर्मा हैं । वर्तमान में महाविद्यालय इन्हीं की देखरेख में गतिशील बना हुआ है । इन उक्त पाँचों भारतीय संस्कृति के स्वयंसेवी उपासकों व गुरु – शिष्यों ने ही यह संस्कृत महाविद्यालय रूपी ज्ञानयज्ञ गत २७ वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया था , जोकि अपने लक्ष्य की ओर धीरे – धीरे बढ़ता चला जा रहा है ।
श्री व्यास संस्कृत महाविद्यालय की विविध क्षेत्रों में गत २७ वर्षीय उपलब्धियाँ -
( क ) शैक्षिकीय ( प्राचार्य वर्ग )
१. महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो० गङ्गादत्त जी को संस्कृत व हिन्दी के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान करने के उपलक्ष्य में सन् २00६ में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जाना ।
२. प्रो० गङ्गादत्त ‘ विनोद ’ द्वारा २00६– 0७ में दो मास का अमेरिका प्रवास करना । अपने प्रवास में प्राचीन भारतीय वैदिक ज्ञान का विद्यालयों व विभिन्न स्थलों पर भाषणादि द्वारा प्रचार करना ।
३. डॉ० ओम कुमार शर्मा
सम्मानप्राप्त –
1. शास्त्री प्रथम वर्ष – प्रथम स्थान , हि० प्र० वि० वि० , शिमला ।
2. दर्शनाचार्य द्वितीय वर्ष – प्रथम स्थान , हि० प्र० वि० वि० , शिमला। हिमोत्कर्ष संस्था ( ऊना ) द्वारा स्वर्णपदक प्राप्त ।
3.दर्शन रत्न उपाधि द्वारा – अन्ताराष्ट्रिय ज्योतिष एवं आध्यात्मिक कान्फ्रेंस , भारत सरकार व श्रीलङ्का सर्वकार के तत्त्वावधान में जम्मू विश्वविद्याल , 2005 ।
4. अभिनवशङ्कर सम्मान – द्वारा – आथर्ज गिल्ड ऑफ हिमाचल , 2017
5. राष्ट्र रत्न अवार्ड द्वारा – ग्लोबल सोसायटी फॉर हेल्थ एण्ड ऐजुकेशनल ग्रोथ , दिल्ली , 2018
6. भारत विद्या शिरोमणि अवार्ड द्वारा – इण्डियन सालिडेरिटी काऊन्सिल , नई दिल्ली , 2019
7. भारत विद्या शिरोमणि अवार्ड द्वारा – इण्डियन सालिडेरिटी काऊन्सिल , नई दिल्ली , 2020
8. गोल्डन ऐजुकेशनिष्ट ऑफ इण्डिया अवार्ड नेशनल एवं इण्टरनेशनल काम्पेण्डियम् , नई दिल्ली , 2021
9. रामधारी सिंह दिनकर सम्मान ।
10. कलम कलाधर सम्मान ।
11. शताब्दी सम्पादक सम्मान
12. सम्पादक रत्न सम्मान
13. राष्ट्रिय व अन्ताराष्ट्रिय संस्कृत गोष्ठी शोध पत्र प्रस्तुति – तिरुपति , वाराणसी , नागपुर , जम्मू – कश्मीर , कुरुक्षेत्र , आसाम , हरिद्वार , कटरा , उज्जैन ।
14.अखिल भारतीय प्राच्यविद्या सम्मेलन ( पुणे , महाराष्ट्र , ) के आजीवन सदस्य ।
15. चार पी० एच० डी० व छः एम० फिल० छात्र – छात्राओं का मार्गदर्शन सहयोग ।
( ख ) शैक्षिकीय ( छात्र वर्ग )
१. सन् १९९६ में सप्त दिवसीय ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड शिविर का आयोजन करना । यह शिविर हिमाचल प्रदेश शिक्षा निदेशालय , शिमला द्वारा करवाया गया था । इसमें १५0 प्रशिक्षणार्थियों को ज्योतिष व कर्मकाण्ड का महत्त्व व उपयोग बतलाया गया था एवं उन्हें शिक्षा निदेशालय की ओर से तत्सम्बन्धी प्रमाण – पत्र भी प्रदान किए गए ।
1. सन् 1995 से गत 27 वर्षों से श्री रघुनाथपुर मन्दिर परिसर में चालित ।
2. गत 25 वर्षों में 1529 विशिष्ट शास्त्री तथा 121 प्रभाकर उत्तीर्ण हुए।
3. सत्र 2011 में प्राक् शास्त्री द्वितीय वर्ष की टॉपर छात्रा कु० सोनिया की उपलब्धि ( स्वर्ण पदक )
4. 25 वर्षों का परीक्षा परिणाम 92% प्रतिशत ।
5. राज्यस्तरीय श्लोकोच्चारण प्रतियोगिता ( हिमाचल संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित ) दि. 18/12/2015 को शुभम द्वारा प्रथम स्थान प्राप्त करना ।
6. दि. 01 / 12 / 2017 सत्र 2016 -17 में राज्यस्तरीय भाषण प्रतियोगिता मानव संसाधन मन्त्रालय के अधीन चलित राष्ट्रीय संस्कृतसंस्थान द्वारा संस्कृत विद्यापीठ गरली , कागड़ा ( हि. प्र. ) में दो छात्रों कु. अम्बरा व कु. सोनिया ने द्वितीय स्थान तथा कु. हिमानी द्वारा प्रथम स्थान प्राप्त किया गया ।
7. प्रथम स्थान प्राप्त कु. हिमानी ने राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान द्वारा आयोजित राष्ट्रस्तरीय संस्कृत भाषण प्रतियोगिता में दि. 28/12/2016 , त्रिपुरा की राजधानी , अगरतल्ला में सफल भाग ग्रहण किया ।
8. राज्यस्तरीय व राष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिताओं में सफल भाग ग्रहण करना ।
9. राज्यस्तरीय हिन्दी दिवस प्रतियोगिता ( जिला भाषा विभाग शिमला ) दि. 14/ 09/ 2018 को सृष्टि द्वारा निबन्ध लेखन में प्रशंसनीय स्थान प्राप्त किया ।
10. सत्र 2018 – 19 में राज्यस्तरीय भाषण प्रतियोगिता मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा संस्कृत विद्या पीठ गरली में दो छात्रों अनीता , मंजू का द्वितीय स्थान तथा मोनिका ठाकुर , कुसुमलता ने प्रथम स्थान प्राप्त किया ।
11. कु. मोनिका ठाकुर व कुसुमलता द्वारा राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान द्वारा त्रिपुरा में आयोजित राष्ट्रिय शास्त्रीय भाषण प्रतियोगिता में जनवरी , 2019 में महाविद्यालय व हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व करना दि. 07/01/2019 से 09/01/2019 तक ।
12. महाविद्यालय के पूर्व छात्र पुरषोत्तम लाल ठाकुर सत्र 2019 – 20 में श्री लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय ( केन्द्रीय विश्वविद्यालय ) नई दिल्ली में पी. एच. डी. छात्र के रूप में प्रवेश पाना।
13. महाविद्यालय के पूर्व छात्र पुरषोत्तम लाल ठाकुर द्वारा 2023 में पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त करना ।
14. महाविद्यालय की पूर्व छात्रा अम्बिका महारपा द्वारा सत्र 2019 से राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान , नई दिल्ली द्वारा संचलित गरली विद्यापीठ , काँगड़ा से पी. एच. डी. करना ।
15 महाविद्यालय की पूर्व छात्रा हीरा देवी द्वारा सत्र 2020 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला से एम० फिल० की उपाधि प्राप्त करना ।
16. अभी तक महाविद्यालय के लगभग 100 से अधिक पूर्व छात्र राजकीय क्षेत्र में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं । तथा लगभग 200 से अधिक छात्र कर्मकाण्ड व गैर सरकारी क्षेत्र में अपनी सेवाएँ देकर लोकहित के कार्य में निरन्तर अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं ।
17. हिमाचल प्रदेश के नवोदित शास्त्री विद्यार्थियों का “ अध्यापन प्रशिक्षण केन्द्र ” ।
18. राज्यीय व जिला स्तरीय संस्कृत सप्ताह मनाने में महाविद्यालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका ।
19. महाविद्यालयीय छात्रों द्वारा विविध गोष्ठियों में भाग लेना ।
20. सत्र 2022 – 23 में निम्नलिखित कार्यक्रमों का सफल आयोजन व भागग्रहण ।
( क ) 26/06/2022 , कबीर दास जयन्ती समारोह , अटल सदन , ढालपुर , कुल्लू , हि०प्र० ।
( ख ) 15/09/2022 , हिन्दी पखवाड़ा , अटल सदन , ढालपुर , कुल्लू , हि० प्र० ।
( ग ) 10-11/08/2022, राज्यस्तरीय संस्कृत दिवस समारोह , ज्वाला जी काँगड़ा , हि० प्र० ।
( घ ) 11/9/22 , राज्यस्तरीय हिन्दी दिवस समारोह , गेयटी थियेटर , शिमला , हि० प्र० ।
( ङ ) 10/03/23 , राज्यस्तरीय सांस्कृतिक समारोह , श्री माँ संस्कृत महाविद्यालय , ज्वालामुखी काँगड़ा , हि ० प्र० ।
( ग ) प्राशासनीय –
सन् २00४ अगस्त में महाविद्यालय का पञ्जीकरण स्वनामधन्य समाजसेवी व तत्कालीन संस्था के अध्यक्ष श्री सी० आर० राशपा जी के तत्त्वावधान में श्री स्वामी माधवानन्द सरस्वती वेदविद्या शोध संस्थान के रूप में हुआ ।
( घ ) शोधकीय –
शोध संस्थान के रूप में पञ्जीकृत होने पर महाविद्यालय का कार्यक्षेत्र शोध भी बन गया । इस क्षेत्र में निम्न विद्यार्थियों / शिक्षकों को संस्थान ने शोध कार्य में सहयोग प्रदान किया –
शोधार्थी | वर्ष | विषय | एम० फिल० / पी० एच० डी० | विश्वविद्यालय |
---|---|---|---|---|
श्री गीताराम ठाकुर | १९१९ | हिन्दी | एम० फिल० | शिमला |
श्री संजय शर्मा | १९१९ | संस्कृत | एम० फिल० | जम्मू |
श्री विनोद शर्मा | २००५ | संस्कृत | पी० एच० डी० | जम्मू |
श्री बलदेव शर्मा | २००७ | संस्कृत | पी० एच० डी० | जम्मू |
श्री संजय शर्मा | २००८ | संस्कृत | एम० फिल० | शिमला |
श्री ज्ञाबे राम ठाकुर | २०१० | संस्कृत | एम० फिल० | शिमला |
श्रीमती हीरा देवी | २०१९ | संस्कृत | एम० फिल० | शिमला |
डॉ० पुरषोत्तम लाल ठाकुर | २०२३ | संस्कृत | पी० एच० डी० | नई दिल्ली |
इस प्रकार से एक हिन्दी व सात संस्कृत शोधार्थी अपनी उपाधियाँ संस्थान के सहयोग से प्राप्त कर चुके हैं ।
1. महाविद्यालय के संस्थापकाचार्य डॉ० ओम कुमार शर्मा द्वारा अभी तक राज्ययीय , राष्ट्रीय व अन्ताराष्ट्रीय स्तर के सम्मेलनों में संस्कृत व अन्य विषयों से सम्बन्धित लगभग पचास शोध पत्रों का सफल वाचन , लेखन आदि ।
2. महाविद्यालय के व्याकरणाचार्य (A.P.) श्री झाबे राम ठाकुर द्वारा अभी तक राज्ययीय , राष्ट्रीय व अन्ताराष्ट्रीय स्तर के सम्मेलनों में संस्कृत विषय से सम्बन्धित दस शोध पत्रों का सफल वाचन ।
3. महाविद्यालय के पूर्व वरिष्ठ छात्र व वर्तमान में सरकारी क्षेत्र में कार्यरत श्री हरि चन्द ठाकुर द्वारा अभी तक राज्ययीय , राष्ट्रीय व अन्ताराष्ट्रीय स्तर के सम्मेलनों में संस्कृत विषय से सम्बन्धित छह शोध पत्रों का सफल वाचन ।
4. महाविद्यालय के सहायकाचार्य ( A.P.) डॉ० पुरषोत्तम लाल ठाकुर द्वारा अभी तक राज्यीय, राष्ट्रीय व अन्ताराष्ट्रीय स्तर के सम्मेलनों में संस्कृत विषय सें सम्बन्धित सात शोध पत्रों का सफल वाचन ।
5. डॉ० पुरषोत्तम लाल ठाकुर के शोध पत्रों को यू . जी. सी. द्वारा मान्यता प्राप्त अन्ताराष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं में स्थान मिलना व प्रकाशित होना ।
6. डॉ० पुरषोत्तम लाल ठाकुर द्वारा अभी तक राष्ट्रीय व अन्ताराष्ट्रीय स्तर की लगभग दस कार्यशालाओं में सफलता पूर्वक भाग लेना ।
( ङ ) सामाजिकीय –
१. सन् २00५ में भारत सरकार के राष्ट्रिय आपदा कोष में सुनामी त्रासदी हेतु माननीय जिला उपायुक्त महोदय द्वारा रु०२५ , 000 / की धनराशि प्रदान की गई ।
२. सन् २00७ में कुल्लू जिले के मलाणा अग्निकाण्ड विपदा में जनता द्वारा लगभग रु०१,00,000/- की धनराशि छात्रों व प्राध्यापकों द्वारा समाज से एकत्रित करके प्रदान की गई व ३00 कम्बल भी छात्रों व प्राध्यापकों ने स्वयंसेवा द्वारा ढोकर मलाणा पहुँचाए ।
३. कोविड – 19 हेतु प्रधानमन्त्री सहायता कोष में रु० 11000/- श्री व्यास संस्कृत महाविद्यालय द्वारा प्रदान करना ।
( च ) आध्यात्मिकीय
१. श्री स्वामी माधवानन्द सरस्वती वेद विद्या शोध संस्थान व्यासाश्रम में यज्ञादि आध्यात्मिक एवं आधिदैविक अनुष्ठानों का गत 27 वर्षों में निरन्तर आयोजन ।
२. उक्त आयोजनों में गत 27 वर्षों में अनुमानित 15,00000/- की राशि व्यय ।
३. जिज्ञासु विद्यार्थियों व साधकों का प्रशिक्षण केन्द्र ।
( छ ) छात्रवृत्तीय –
महाविद्यालय द्वारा निर्धन व योग्य छात्र / छात्राओं को छात्रवृत्ति के माध्यम से आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया जाता है । गत सभी सत्रों में अनुमानित रु० 2,00,000/- छात्रवृत्ति आदि में व्यय होना ।
( ज ) पुस्तकालीय –
महाविद्यालय के पास एक प्रामाणिक संस्कृत ग्रन्थों का उत्तम पुस्तकालय है , जिसमें व्याकरण , दर्शन , साहित्य व वेद के विषयों में शोधकार्य करने की पर्याप्त सामग्री विद्यमान है । इसी के साथ संस्कृत व हिन्दी की राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं से भी पुस्तकालय सुसज्जित है ।
( झ ) प्रकाशकीय –
१. सन् २00७ से भारतीय विचारधारा की त्रैमासिक क्रान्तिसूत्र हिन्दी पत्रिका का सफलतापूर्वक राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशन सहयोग करना तथा सम्पादक रत्न व रामधारी सिंह ‘ दिनकर ’ आदि पाँच राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों को प्राप्त करना ।
२. महाविद्यालय की वार्षिक स्मारिका व्यासोर्मि का २00७– 0८ में प्रकाशित होना ।
प्रवेश योग्यता
१. प्राक् शास्त्री प्रथम वर्ष में प्रवेश के लिए दसवीं कक्षा ( हि० प्र० शिक्षा बोर्ड , धर्मशाला ) द्वारा संस्कृत विषय सहित उत्तीर्ण होना आवश्यक है ।
२.संस्कृत विषय सहित १0 +२ की परीक्षा में उत्तीर्ण छात्र शास्त्री प्रथम वर्ष में प्रवेश ले सकता है ।
३. हिमाचल विश्वविद्यालय में पञ्जीकृत होने के पश्चात् कोई भी छात्र हिमाचल प्रदेश बोर्ड द्वारा सञ्चालित किसी भी परीक्षा देने का पात्र नहीं होगा ।
४. संस्कृत विषय से रहित १0 +२ के छात्र को पुनः प्राक् शास्त्री प्रथमवर्ष में प्रवेश मिलेगा । ( संशोधित नियमानुसार भी प्रवेश मिल सकता है । )
५. प्राक् शास्त्री प्रथमवर्ष के लिए ५0 स्थान निश्चित हैं । विशेष दशा में प्राचार्य के अधिकार द्वारा ही निर्णय लिया जायेगा ।
६. विशिष्टशास्त्री उपाधि के लिए प्राक् शास्त्री -१ से ही अंग्रेजीअनिवार्य विषय के रूप में तथा राजनीति / हिन्दी / इतिहास इन वैकल्पिक विषयों में से किसी एक विषय का अध्ययन करना आवश्यक होगा ।
७. विशिष्ट शास्त्री उपाधि संस्कृत विषय में ऑनर्स के रूप में तथा बी०ए० विद् क्लासिक के रूप में मान्यता प्राप्त है । अतः साधारण स्नातक से इसका क्षेत्र अधिक व्यापक है ।
८. स्नातक उपाधिधारियों को राजकीय एवं अराजकीय क्षेत्रों में जो सुविधाएँ व अर्हताएँ ( योग्यताएँ ) उपलब्ध हैं , उन सभी के अधिकारी पात्र विशिष्ट शास्त्री भी हैं ।
९. सभी प्रकार की NET , SET ,IAS , HAS , IPS , IFS आदिकी परीक्षाओं के पात्र भी विशिष्ट शास्त्री हैं ।
१०. उच्च अनुसन्धान क्षेत्र में नवीन शोध करने तथा प्रचीन भारतीय विद्या को संरक्षित , संवर्धित करने की पात्रता भी विशिष्ट शास्त्री में निहित रहती है ।
११. संस्कृत विषय में ऑनर्स की विशिष्ट शास्त्री उपाधि विद्यार्थी को अत्याधुनिक (Modren ) भी बनाती है ।
१२. बी० एड० हिमाचल प्रदेश से करने के लिए विद्यार्थियों को राजनीति शास्त्र या इतिहास विषय का अध्ययन करना आवश्यक होगा । स्वेच्छानुसार हिन्दी विषय का अध्ययन भी कर सकते हैं ।
प्रवेश के लिए आवश्यक सामग्री –
१. दसवीं कक्षा के प्रमाणपत्र की सत्यापित दो प्रतियाँ ।
२. अन्तिम उत्तीर्ण की गई परीक्षा की सत्यापित एक प्रति ।
३. चरित्र प्रमाण – पत्र व विद्यालय / विश्वविद्यालय से प्राप्त परित्यजन प्रमाण – पत्र ( Migration ) की मूल प्रतियाँ ।
४. छायाचित्र की चार प्रतियाँ ।
अनुशासनात्मक निर्देश
प्रातः सत्र –प्रातः कालीन प्रार्थना सभा में ९:४0 पर सभी छात्रों की उपस्थिति अनिवार्य है । समय पर उपस्थित न होने पर छात्र / छात्रा को आर्थिक दण्ड दिया जाएगा । प्रत्येक छात्र / छात्रा को प्रातःकालीन सभा में संस्कृत से सम्बन्धित किसी भी विषय पर विचार प्रकट करने के लिए तैयार रहना होगा ।
कक्षा परीक्षाएँ –महाविद्यालय में प्रतिमास कक्षा परीक्षाओं का आयोजन किया जाता है । जिसमें सभी विद्यार्थियों को प्रतिमास सम्बन्धित विषयों पर परीक्षाएँ अवश्य ही देनी होंगी । परीक्षा न देने की स्थिति में विद्यार्थी को दण्डित भी किया जा सकता है । इस विषय में अभिभावक को भी सूचित किया जाएगा ।
कक्षा उपस्थिति –
१. कक्षा में विद्यार्थियों की उपस्थिति प्रति अवसर पर नियमित रूप से होनी चाहिए ।
२. वर्ष में ७५% प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य है ।
३. निरन्तर छः दिन अनुपस्थित रहने पर निष्कासित कर दिया जाएगा ।
४. पुनः प्रवेश निर्धारित शुल्क देने पर एक बार ही होगा ।
अनुशासन –
१. महाविद्यालय में अध्ययनरत सभी छात्रों / छात्राओं को चाहिए कि वे कक्षा में अनुशासन बनाए रखें । किसी भी प्रकार के निकृष्ट कार्यों में संलिप्त न रहें ।
२. कक्षा में प्राध्यापक न होने पर कक्षा में विशेष उत्तरदायित्ववहन करने वाले विद्यार्थी की आज्ञा का पालन करें ।
३. कॉलेज परिसर में मोबाइल फोन का प्रयोग वर्जित है ।
४. विश्वविद्यालय की वार्षिक परीक्षा में अनुत्तीर्ण रहने पर प्रवेश निषेध होगा ।
५. अनुत्तीर्ण विद्यार्थियों के आपातस्थिति में प्रवेशार्थ वार्षिक प्रवेश शुल्क दो गुणा किया जाएगा ।
६. विद्यालय में स्वेच्छा से आ जाना व चले जाना एक दण्डनीय अपराध होगा । ऐसे छात्र / छात्रा का नाम महाविद्यालय से निलम्बित कर दिया जाएगा व पुनः प्रवेश भी नहीं मिलेगा ।
अथ श्रीसरस्वती वन्दना
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ।। १ ।।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशङ्करात्प्रभृतिभिर्देवैः सदावन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।। २ ।।
वीणाधरे विपुलमङ्गलदानशीले भक्तार्तिनाशिनि विरञ्चिहरीशवन्द्ये । कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् ।। ३ ।।
मोहान्धकारभरिते हृदये मदीये मातः सदैव कुरु वासमुदारभावे । स्वीयावयवनिर्मलसुप्रभाभिः शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम् ।। ४ ।।
ब्रह्मा जगत् सृजति पालयतीन्दिरेशः शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः । न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे न स्युः कथञ्चिदपि ते निजकार्यदक्षाः ।। ५ ।।
आशासु राशिः भवदङ्गवल्ली – भासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम् । मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दुं वन्देऽरविन्दासनस्थां त्वाम् ।। ६ ।।
सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम् । देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः ।। ७ ।।
पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती । प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या ।। ८ ।।
सरस्वत्यै नमोनित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः । वेदवेदान्तवेदाङ्गविद्यास्थानेभ्य एव च ।। ९ ।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने । विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते ।। १0 ।।
ओ३म् शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः !!!
वैदिकशान्तिपाठः
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाँसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ।। १ ।।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।। २ ।।
ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।। ३ ।।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।। ४ ।।
ॐआप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक् प्राणश्चक्षुः श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि ।सर्वम् ब्रह्मोपनिषदम् । माऽहं ब्रह्म निराकुर्याम् । मा मा ब्रह्म निराकरोदनिराकरणमस्त्वनिराकरणं मेऽस्तु । तदात्मनि निरते य उपनिषत्सु धर्मास्ते मयि सन्तु ते मयि सन्तु ।। ५ ।।
ॐ वाङ् मे मनसि प्रतिष्ठिता । मनो मे वाचि प्रतिष्ठितम् । आविराविर्म एधि । वेदस्य म आणीस्थः । श्रुतं मे मा प्रहासीः । अनेनाधीतेनाहोरात्रान्सन्दधामि । ॠतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम् । अवतु वक्तारमवतु वक्तारम् ।। ६ ।।
ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ॠतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम् । अवतु वक्तारम् ।।७ ।।
ॐ यश्छन्दसामृषभो विश्वरूपः । छन्दोभ्योऽध्यमृतात्सम्बभूव । स मेन्द्रो मेधया स्पृणोतु । अमृतस्य देवधारणो भूयासम् । शरीरं मे विचर्षणम् । जिह्वा मे मधुमत्तमा । कर्णाभ्यां भूरि विश्रुवम् । ब्रह्मणः कोशोऽसि मेधया पिहितः । श्रुतं मे गोपाय ।। ८ ।।
ॐ शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः !!!
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